Swami Vivekananda : -
प्रारंभिक जीवन : -
जन्म - 12 जनवरी 1863
जन्म स्थान - कोलकाता
पूर्ण नाम - नरेंदर नाथ दत्त
पिता का नाम - विश्वनाथ दत्त
गुरु का नाम - रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानन्द द्वारा लिखित 3 महत्व पूर्ण पुस्तकों के नाम -
1. राजयोग
2. कर्मयोग
3. ज्ञानयोग
कहानियां -
1. लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना।
2. नारी का सम्मान।
विवेकानन्द की मूर्ति - रांची में
विवेकानन्द मठ - कन्याकुमारी में
उत्तर भारत की यात्रा - मई-दिसम्बर 1897
राष्ट्रीय युवा दिवस -12 जनवरी
महासमाधि - 4 जुलाई 1902
मृत्यु - 4 जुलाई 1902
मृत्यु स्थान - बेलुर
स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त -
1. बालक व बालिका को समान रूप से शिक्षा देनी चाहिए।
2. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
3. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित अनमोल वचन -
1. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
2. पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
3. जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरुरी है।
उद्धरण -
1. उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि सफलता प्राप्त नहीं हो जाए।
2. ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं। यह हम ही हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हाथ रखा है और रोते हुए कहा कि अंधेरा है।
पूर्ण नाम - नरेंदर नाथ दत्त
पिता का नाम - विश्वनाथ दत्त
गुरु का नाम - रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानन्द द्वारा लिखित 3 महत्व पूर्ण पुस्तकों के नाम -
1. राजयोग
2. कर्मयोग
3. ज्ञानयोग
कहानियां -
1. लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना।
2. नारी का सम्मान।
विवेकानन्द की मूर्ति - रांची में
विवेकानन्द मठ - कन्याकुमारी में
उत्तर भारत की यात्रा - मई-दिसम्बर 1897
राष्ट्रीय युवा दिवस -12 जनवरी
महासमाधि - 4 जुलाई 1902
मृत्यु - 4 जुलाई 1902
मृत्यु स्थान - बेलुर
स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त -
1. बालक व बालिका को समान रूप से शिक्षा देनी चाहिए।
2. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
3. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित अनमोल वचन -
1. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
2. पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
3. जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरुरी है।
उद्धरण -
1. उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि सफलता प्राप्त नहीं हो जाए।
2. ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं। यह हम ही हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हाथ रखा है और रोते हुए कहा कि अंधेरा है।
इनके बचपन से प्राप्त शिक्षाएं : -
1. जाति व्यवस्था कैसे समाप्त हो : -
स्वामी विवेकानंद के पिता जी भी महान व्यक्ति थे। सभी रीती - रिवाजों को देखते हुए इनके भी यहां हुका पिने का रिवाज था। बिल्ले ने देखा की सभी लोग अपना - अपना हुका पी रहे थे। उन्होंने सोचा की यदी सभी एक ही हुका पी लेंगे तो इसमें क्या कठिनाई है, जब सभी लोग उस कमरे से बाहर चले गए तभी उन्होंने एक - एक हुका उठाया और पीने लगे। विश्वनाथ दत्त ने इनसे पूछा की तुम ये क्या कर रहे हो ? इन्होनें बड़ी कठोरता से जबाव दिया की यदि सभी एक ही हुका पी लेंगे तो क्या बुराई है ? फिर स्वामी ने कहा ओह ! ये रीती - रिवाज भी कितनी बहुधा चीज़ है। उन्होंने रीति रिवाजो का कठोरत से विरोद किया। और सभी को एकता की शिक्षा से अवगत करवाया।
2. भुत की खोज में : -
2. भुत की खोज में : -
एक दिन स्वामी अपने मित्र के घर में खेलने के लिए गए, वहां एक बहुत बडा वृक्ष था, उसके पास में ही उसके मित्र के दादा जी का घर था। स्वामी को पेड़ पर उल्टा लटकाना बहुत ही पसंद था। वो उस वृक्ष पर हमेंशा उल्टा लटकते थे, जिनसे दादा जी बहुत घबराते थे की बच्चों की ये शरारत कहीं उन पर भारी न पड जाये, इसलिए उन्होंने एक दिन स्वामी को पास में बुलाकर कहा, इस वृक्ष पर एक बहुत बडा देत्ये रहता है, जो बच्चों की गर्दन मरोड कर खा जाता है, इसलिए तुम उस वृक्ष पर मत चढ़ना नहीं तो वो तुम्हे भी खा जायेगा।
अपनी सफलता पर खुश होकर वो अंदर चले गए और स्वामी वापिस आकर उस वृक्ष पर उलटे लटकने लगे, उनके एक मित्र ने उन्हें उस कहानी से अवगत करवाया। तब स्वामी ने शांत स्वर में कहा की क्या मूर्खता भरी बातें कर रहे हो तुम यूँ ही किसी बात पर विश्वास मत कर लेंना की किसी ने तुमसे कहा है। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है की सुनी हुई बात पर हमें कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। जब तक उससे ठीक से परख न लें तब तक उस बात पर यकीन नहीं करना चाहिए।
3. गुरु की परीक्षा : -
स्वामी विवेकानंद की यह खास बात थी की वो किसी चीज को परखने के लिए सबसे पहले उसकी अच्छी तरहं से जाँच पढ़ताल करते थे। एक दिन उनके गुरु ने कहा की तुम छीके को श्पर्श नहीं कर सकते स्वामी ने एक दिन गुरु की अनुपस्थिति में एक छीके को उठाकर गुरु के बिस्तर के नीचे रख दिया। जब स्वामी के गुरु जी बिस्तर पर बैठे त्यों ही पीड़ा से कराह उठे, उनके सेवकों में से एक ने तुरंत ही बिस्तर की चादर उठाकर झाड़ा तो पीढ़ा के कारण के रूप में सिक्का जमीन पर गिर पड़ा।
नरेंद्र नाथ चुपचाप यह सारा तमाशा देख रहे थे। श्री रामकृष्ण समझ गए कि ऐसा किसने किया? किंतु उन्होंने नरेंद्र नाथ को धिक्कार का एक शब्द भी नहीं कहा, उन्होंने सहज भाव से अपने शिष्य से कहा जैसा भी अक्सर कहा करते थे 'मुझे परखो जैसे छीके को पैसे में बदलने वाला अपने को परखता है' "तुम तब तक मुझे मत अपनाओ जब तक तुम मुझे पूरी तरह परख नहीं लेते" इस प्रकार नरेंद्र ने अपने गुरु की परीक्षा ली
अपनी सफलता पर खुश होकर वो अंदर चले गए और स्वामी वापिस आकर उस वृक्ष पर उलटे लटकने लगे, उनके एक मित्र ने उन्हें उस कहानी से अवगत करवाया। तब स्वामी ने शांत स्वर में कहा की क्या मूर्खता भरी बातें कर रहे हो तुम यूँ ही किसी बात पर विश्वास मत कर लेंना की किसी ने तुमसे कहा है। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है की सुनी हुई बात पर हमें कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। जब तक उससे ठीक से परख न लें तब तक उस बात पर यकीन नहीं करना चाहिए।
3. गुरु की परीक्षा : -
स्वामी विवेकानंद की यह खास बात थी की वो किसी चीज को परखने के लिए सबसे पहले उसकी अच्छी तरहं से जाँच पढ़ताल करते थे। एक दिन उनके गुरु ने कहा की तुम छीके को श्पर्श नहीं कर सकते स्वामी ने एक दिन गुरु की अनुपस्थिति में एक छीके को उठाकर गुरु के बिस्तर के नीचे रख दिया। जब स्वामी के गुरु जी बिस्तर पर बैठे त्यों ही पीड़ा से कराह उठे, उनके सेवकों में से एक ने तुरंत ही बिस्तर की चादर उठाकर झाड़ा तो पीढ़ा के कारण के रूप में सिक्का जमीन पर गिर पड़ा।
नरेंद्र नाथ चुपचाप यह सारा तमाशा देख रहे थे। श्री रामकृष्ण समझ गए कि ऐसा किसने किया? किंतु उन्होंने नरेंद्र नाथ को धिक्कार का एक शब्द भी नहीं कहा, उन्होंने सहज भाव से अपने शिष्य से कहा जैसा भी अक्सर कहा करते थे 'मुझे परखो जैसे छीके को पैसे में बदलने वाला अपने को परखता है' "तुम तब तक मुझे मत अपनाओ जब तक तुम मुझे पूरी तरह परख नहीं लेते" इस प्रकार नरेंद्र ने अपने गुरु की परीक्षा ली

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