Bhim Rao Ambedkar : -

प्रांरभिक जीवन : -

Bhim Rao Ambedkar
Bhim Rao Ambedkar
डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। इन्होनें मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होनें दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया। ये स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे। नौ साल की लड़की रमाबाई से उनकी शादी कराई गई थी। तब वे पांचवी अंग्रेजी कक्षा पढ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां इन्होनें एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की।
इन्होनें अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। इनका जन्म दिवस एक तौहार के रूप में भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है। ये हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत कही जाती थी और इस कारण इन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की

जन्म - 14 अप्रैल 1891

जन्म स्थान - डॉ॰ आम्बेडकर नगर

पूर्ण नाम - डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर

पिता का नाम - रामजी मालोजी सकपाल

बच्‍चे - भइयासाहेब आंबेडकर

मृत्यु - 6 दिसंबर 1956

मृत्यु स्थान - दिल्ली

दो महान व्यक्तियों को अपना गुरु माना - राजह, राव बहादुर

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकों के नाम -

1. अछूत और ईसाई धर्म

2. अछूत कौन और कैसे?

3. कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया?

4. जातिभेद का बीजनाश / जातिभेद का उच्छेद / एनिहिलेश ऑफ कास्ट

5. डॉ आंबेडकर की साक्षी साऊथब्रो कमेटी के समक्ष

6. डॉ. आंबेडकर और बौद्ध धम्म

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रतिपादित अनमोल वचन -

1. समाज में अनपढ़ लोग है ये हमारे समाज की समस्या नही है लेकिन जब समाज के पढ़े लिखे लोग भी गलत बातो का समर्थन करने लगते है और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते है यही हमारे समाज की समस्या है

2. जीवन लम्बा नही बल्कि बड़ा और महान होना चाहिए

3. हम सबसे पहले और अंत में भी भारतीय है

4. यदि मुझे लगेगा की सविंधान का दुरूपयोग हो रहा है तो सबसे पहले मै इस सविंधान को ही जलाऊंगा

5.  कौन सा समाज कितना तरक्की कर चूका है इसको जानने के लिए उस समाज के महिलाओ की डिग्री देख ले

6. जो कौम अपना इतिहास तक नही जानती है वे कौम कभी अपना इतिहास भी नही बना सकती है

7. भाग्य में विश्वास रखने के बजाय अपने शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए

8. एक इतिहास लिखने वाला इतिहासकार सटीक, निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए

9. मानव के बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए

10. हिन्दू धर्म में कारण, विवेक और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नही है

11. समानता एक कल्पना हो सकता है लेकिन इसे गवर्निंग सिद्धांत के रूप से स्वीकार करना जरुरी है

12. एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठ्ताप्राप्त व्यक्ति से हमेसा इस तरह अलग होता है की वह कभी भी समाज का सेवक बनने को तैयार रहता है

13. शिक्षित बने, संघटित रहे और संघर्ष करे

14. उदासीनता एक ऐसे किस्म की बीमारी है जो किसी को प्रभावित कर सकती है

15. इन्सान का जीवन स्वन्त्रत है इन्सान समाज के विकास के लिए ही नही अपितु स्वय के विकास के लिए पैदा हुआ है

16. जब तक आप सामाजिक रूप से स्वत्रंत नही है कानून जो भी आपको स्वत्रंता देता है वह आपके लिए बेमानी है

17. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ सामजिक असंतोष होना काफी नही है बल्कि क्रांति की सफलता के लिए न्याय और राजनितिक के साथ सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था होनी चाहिए

18. कानून और व्यवस्था राजीतिक शरीर की वो दवा है जो राजीतिक शरीर के बीमार होने पर वह दवा जरुर देना चाहिए

19. इतिहास यही बताता है की जहा नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहा जीत हमेसा अर्थशास्त्र की ही होती है निहित स्वार्थो को तबतक स्वेच्छा से नही छोड़ा गया है जबतक की मजबूर करने के लिए पर्याप्त ताकत नही लगाया गया हो

20. यह जरुरी नही होता है की अत्यधिक धन वाला व्यक्ति अज्ञानी न हो और अत्यधिक निर्धन व्यक्ति उच्च श्रेणी का बुद्धि वाला न हो, अत्यधिक सम्पत्ति भी बुद्धि की कुशाग्रता को कुंठित करती है तो यही निर्धनता में इसे ऊपर ले जाती है